केंद्र सरकार की लेटरल एंट्री {lateral entry} नीति और आरक्षण व्यवस्था एक बार फिर से राजनीतिक बहस का केंद्र बन गई है। हाल ही में यूपीएससी द्वारा निकाली गई 45 पदों की भर्तियों को रद्द करने का निर्णय लिया गया, जिसके पीछे आरक्षण का अभाव मुख्य कारण बताया जा रहा है। इस निर्णय पर विपक्ष ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए इसे आरक्षण विरोधी कदम करार दिया है। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी जैसे नेताओं ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और केंद्र की नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं।
लेटरल एंट्री {lateral entry} और आरक्षण: विवाद की जड़
लेटरल एंट्री {lateral entry} का मतलब है कि सरकारी सेवाओं में सीधे निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जाए। इसके लिए योग्यता के तौर पर 45 वर्ष की उम्र और 15 साल का अनुभव मांगा जाता है। 17 अगस्त को यूपीएससी द्वारा निकाले गए 45 पदों की भर्ती के लिए विज्ञापन में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया था। इस पर विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई और सरकार को घेरना शुरू कर दिया। इसके बाद, केंद्र सरकार ने इस भर्ती प्रक्रिया को रद्द कर दिया। कार्मिक विभाग ने यूपीएससी चेयरमैन को निर्देश दिया कि आरक्षण को ध्यान में रखते हुए {lateral entry} इस भर्ती को वापस लिया जाए।
राजनीतिक बयानबाज़ी और आरोप
नेता तेजस्वी यादव ने {lateral entry} मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मोदी सरकार संविधान और आरक्षण को खत्म करने की साजिश कर रही है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए आरोप लगाया कि सरकार दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के अधिकारों को छीन रही है। राहुल गांधी ने भी {lateral entry} इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि संविधान और आरक्षण व्यवस्था की रक्षा के लिए वे हर संभव कदम उठाएंगे।
https://x.com/yadavtejashwi/status/1825821614728163541
सरकारी भर्तियों में आरक्षण की मौजूदा स्थिति
केंद्र सरकार की नौकरियों में संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत आरक्षण का प्रावधान है। वर्तमान में अनुसूचित जाति (SC) को 15%, अनुसूचित जनजाति (ST) को 7.5% और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% आरक्षण दिया जाता है। कुल मिलाकर 50% आरक्षण की व्यवस्था है। लेकिन कई सरकारी विभागों और उच्च पदों पर आरक्षण लागू नहीं होता, जो इस विवाद को और गहरा बनाता है।
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किन विभागों में आरक्षण लागू नहीं होता?
- जूडिशियरी: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 के तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। इसका तर्क यह दिया जाता है कि न्यायिक फैसले देश की न्यायिक व्यवस्था का आधार बनते हैं, इसलिए इनमें अनुभव का महत्व अधिक होता है।
- डिफेंस सेक्टर: आर्मी, नेवी और एयरफोर्स जैसी रक्षा सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। रक्षा क्षेत्र में भर्ती के लिए शारीरिक और मानसिक फिटनेस, लीडरशिप स्किल और देशभक्ति जैसे मानकों को प्राथमिकता दी जाती है।
- वैज्ञानिक संस्थान: ISRO और DRDO जैसे संस्थानों में आरक्षण लागू नहीं होता। यहां तर्क दिया जाता है कि ये संस्थान रक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में काम करते हैं, जहां गुणवत्ता और उत्कृष्टता को प्राथमिकता दी जाती है।
- ऑल इंडिया सर्विसेज में प्रमोशन: IAS, IPS और IFS जैसी सेवाओं में सीनियर लेवल पर प्रमोशन में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। यहां अनुभव और उपलब्धियों के आधार पर पदोन्नति होती है।
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क्या आरक्षण की व्यवस्था से हो रहा है समझौता?
लेटरल एंट्री {lateral entry} विवाद ने इस सवाल को जन्म दिया है कि क्या केंद्र सरकार आरक्षण की व्यवस्था को कमजोर कर रही है? विपक्ष का आरोप है कि सरकार उच्च सेवाओं में आरएसएस से जुड़े लोगों को सीधे भर्ती करके आरक्षण को दरकिनार कर रही है। हालांकि, सरकार का दावा है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाना है। लेकिन विपक्ष इसे संविधान और आरक्षण के खिलाफ साजिश मानता है।