दिल्ली की सत्र अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर (Medha Patkar)को मानहानि केस में पांच महीने की जेल से राहत देते हुए उन्हें एक लाख रुपये जुर्माने और एक साल की प्रोबेशन बॉन्ड पर रिहा किया।
दिल्ली की सत्र अदालत ने प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर {Medha Patkar} को मानहानि के एक मामले में दी गई पांच महीने की साधारण कैद की सजा को प्रोबेशन ऑफ गुड कंडक्ट (अच्छे आचरण की शर्त) पर रिहा करने का फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि चूंकि मेधा पाटकर {Medha Patkar} वरिष्ठ नागरिक हैं और उनके खिलाफ पहले कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है, इसलिए उन्हें सजा में छूट दी जा सकती है।
कोर्ट का फैसला: सजा में नरमी, लेकिन जुर्माना बरकरार
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अपराध की गंभीरता के अनुपात में सजा होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि इस मामले में सजा के लिए कारावास आवश्यक नहीं है। हालांकि, अदालत ने 70 वर्षीय मेधा पाटकर {Medha Patkar} को ₹1 लाख जुर्माना अदा करने की शर्त पर रिहा किया।
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इसके अतिरिक्त, अदालत ने निर्देश दिया कि वे ₹25,000 की प्रोबेशन बॉन्ड और एक समान राशि के श्योरिटी बॉन्ड के साथ एक साल तक अच्छे आचरण पर रहेंगी। इस दौरान यदि कोई कानूनी उल्लंघन होता है, तो उनकी रिहाई रद्द की जा सकती है।
मानहानि का मामला: क्या है पूरा विवाद?
यह मामला वर्ष 2000 का है, जब वर्तमान दिल्ली उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना गुजरात में नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज (NCCL) नामक NGO के अध्यक्ष थे। उस समय मेधा पाटकर {Medha Patkar} ने उनके खिलाफ एक प्रेस नोट जारी किया था जिसमें उन्होंने सक्सेना को “कायर” कहा और हवाला लेन-देन से जुड़ी गंभीर आरोप लगाए।

मानहानि मामले में मेधा पाटकर{Medha Patkar} को मिली राहत
साथ ही, मेधा पाटकर {Medha Patkar} ने प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा था कि वी. के. सक्सेना गुजरात के लोगों और संसाधनों को विदेशी ताकतों के सामने “बंधक” बना रहे हैं। इन बयानों को अदालत ने प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाला और जानबूझकर की गई मानहानिपूर्ण कार्रवाई माना।
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निचली अदालत का फैसला और सत्र न्यायालय की सुनवाई
1 जुलाई 2024 को निचली अदालत ने मेधा पाटकर{Medha Patkar} को पांच महीने की साधारण कैद और ₹10 लाख जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके बाद उन्होंने सत्र न्यायालय में इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। उनके वकील ने तर्क दिया कि पाटकर उम्रदराज हैं और उन्हें कई स्वास्थ्य समस्याएं हैं, इसलिए उन्हें जेल नहीं भेजा जाना चाहिए।
कोर्ट ने क्यों दी राहत?
अदालत ने कहा कि मेधा पाटकर के खिलाफ कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और वह स्वयं भी एक सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ऐसे में उन्हें प्रोबेशन पर छोड़ा जाना न्यायोचित है। अदालत ने जुर्माने की राशि को भी ₹10 लाख से घटाकर ₹1 लाख कर दिया, जिसे अधिक उपयुक्त और “गंभीरता के अनुपात में” बताया गया।

मानहानि मामले में मेधा पाटकर {Medha Patkar} को मिली राहत
कोर्ट की तीखी टिप्पणी भी
हालांकि, कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मेधा पाटकर {Medha Patkar} स्वयं एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, और उन्हें दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा की अहमियत समझनी चाहिए थी। कोर्ट ने टिप्पणी की:
“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग और दूसरों की प्रतिष्ठा के प्रति असंवेदनशील रवैया आपराधिक दंड का विषय होना चाहिए।”
यह टिप्पणी यह दर्शाती है कि कोर्ट ने भले ही सजा में नरमी बरती, लेकिन उनके कृत्य को नैतिक रूप से अनुचित और कानूनी रूप से दोषपूर्ण माना।
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क्या है प्रोबेशन ऑफ गुड कंडक्ट?
प्रोबेशन ऑफ गुड कंडक्ट एक कानूनी विकल्प है जिसमें दोषी को सजा सुनाए जाने के बाद जेल भेजने के बजाय शर्तों पर छोड़ा जाता है। इसमें व्यक्ति को एक निश्चित अवधि तक अच्छे आचरण के साथ समाज में रहने की अनुमति दी जाती है। यदि वह इस दौरान किसी भी प्रकार की कानूनी उल्लंघन करता है, तो उसे पुनः सजा दी जा सकती है।
वादी पक्ष की दलीलें
वी. के. सक्सेना के वकीलों – गजिंदर कुमार और किरण जय – ने अदालत में कहा कि मेधा पाटकर ने जानबूझकर और पूर्व नियोजित तरीके से सक्सेना की छवि को नुकसान पहुंचाया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मेधा पाटकर {Medha Patkar} को सख्त सजा दी जानी चाहिए ताकि दूसरों को भी सबक मिले।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया
मेधा पाटकर {Medha Patkar} की रिहाई के फैसले पर सिविल सोसायटी और सामाजिक कार्यकर्ताओं में राहत की भावना है। वहीं कुछ राजनीतिक और कानूनी विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के बीच संतुलन की एक मिसाल है।
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