हल्की बारिश में भोपाल क्यों हो जाता है पानी पानी,जानिए क्या है वजह

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    मेयर्स ने किया क्या… उमाशंकर और विभा पटेल सिर्फ नालों की सफाई कराते रहे, सूद और शर्मा के समय डूब में आया शहर, कृष्णा महापौर बनीं तो प्लान तक नहीं बनाया

    भोपाल एक ऐसा शहर है। यहां कभी भी अचानक तेज बारिश हो जाती है। इसके चलते शहर की पुरानी और घनी बस्तियों ही नहीं, बल्कि पॉश काॅलोनियां भी पानी-पानी हो जाती हैं। 15 साल पहले 2006 में पूरा शहर पानी-पानी हो गया था। 2006 के बाद 2016, 2018, 2019 और 2020 में भी शहर में जमकर बारिश हुई, लेकिन इसके बावजूद कभी भी पूरे शहर के लिए ड्रेनेज सिस्टम नहीं बना। नगर निगम के चुनाव 1994 से शुरू हुए। 1999 से महापौर का चुनाव सीधे जनता से होना शुरू हुआ। माना जा रहा था कि महापौर जनता के प्रति अधिक जवाबदेह होंगे। लेकिन किसी भी महापौर के कार्यकाल में पूरे शहर की ठोस प्लानिंग नहीं हुई।

    यहां जलभराव ‘परंपरा’

    चांदबड़ , ऐशबाग, महामाई का बाग, छोला, बाल विहार, छावनी, गिन्नौरी, करोंद, अवधपुरी, सोनागिरी, सुंदरनगर, विद्यानगर, गौतम नगर, रचना नगर, शिवाजी नगर, होशंगाबाद रोड की कई कॉलोनियां, बावड़ियाकलां, कोलार रोड, बरखेड़ा पठानी, शाहजहांनाबाद, अशोका गार्डन 80 फिट, जाटखेड़ी, पंचशील, अरेरा कॉलोनी, सैफिया कॉलेज रोड, भोपाल टॉकीज, बाल विहार, नादरा बस स्टैंड चौराहा समेत आसपास के इलाके शामिल हैं।

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    नाला गैंग… तब कर्मचारी ताे रखे जाते थे, बाद में ये सब गुम हो जाते थे

    1994 में उमाशंकर गुप्ता महापौर बने। 1999 में विभा पटेल महापौर। दोनों सिर्फ नालों की सफाई कराते रहे। हर साल नाला गैंग के नाम पर करीब 200 कर्मचारी रखे जाते थे। बाद में गैंग गुम हो जाती थी। गुप्ता के कार्यकाल में भोज वेटलैंड की डीपीआर बनना शुरू हुई और पटेल के कार्यकाल में यह धरातल पर आई। इस वजह से नालों के संबंध में काम करना संभव नहीं था।

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    2006 में… एक ही दिन में रिकॉर्ड बारिश ने खाेल दी सिस्टम की पोल

    2006 में सूद के कार्यकाल में शहर में एक ही दिन में रिकार्ड तोड़ बारिश हुई। महामाई का बाग समेत निचले इलाकों में नाव से रेस्क्यू किया गया। शिवाजी नगर और गौतम नगर, रचना नगर ही नहीं बल्कि अरेरा कॉलोनी में भी पानी भर गया। रचना नगर में नालों के किनारे बने मकानों की बाउंड्रीवॉल टूट गईं। गाड़ियां बहकर नाले में चली गई।

    https://youtu.be/rJ844M0xomY

    बाढ़ से ऐसा सबक … सिर्फ एक नाले का चैनेलाइजेशन किया

    2006 में बाढ़ झेलने के बावजूद पूरे शहर के लिए कोई यूनीफाइड प्लानिंग नहीं हुई। सूद ने शहर में नालों का चैनेलाइजेशन शुरू कराया। लेकिन उनका फोकस भी केवल पुराने निचले इलाके में ही रहा। उनके कार्यकाल में केवल एक नाले को चैनेलाइज किया जा सका।

    अधूरे कार्यों को पूरा कराया, लेकिन सीवेज नेटवर्क नहीं

    कृष्णा गौर ने पांच साल के अपने कार्यकाल में केवल सूद के शेष कार्यों को पूरा कराया। हालांकि उस समय बिछाए गए सीवेज नेटवर्क को आज तक घरेलू कनेक्शनों से नहीं जोड़ा जा सका है और नालों का चैनेलाइजेशन भी आधा-अधूरा ही रह गया है।

    साल पर साल बीते… लेकिन हर बार बारिश ने आईना दिखाया, आज तक तैयारी अधूरी

    वर्ष 2015 में आलोक शर्मा महापौर बने। 2016 में अगस्त में एक ही दिन में रिकार्ड तोड़ बारिश हो गई। पूरा शहर पानी-पानी हो गया। इस दौरान जान-माल का भी नुकसान हुआ। इसके बाद उनके कार्यकाल में 2018 और 2019 में भी शहर में यही हाल बने रहे। केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट अमृत के तहत ड्रेनेज नेटवर्क के लिए अलग से राशि दी। लेकिन लगभग पूरा बजट नरेला क्षेत्र में ही खप गया।

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    ज्यादा बारिश से… 30% इलाके में जलभराव की स्थिति

    जुलाई 2018 में स्मार्ट सिटी का ग्रीन एंड ब्ल्यू मास्टर प्लान जारी हुआ। इसमें स्वीकार किया गया कि सामान्य से ज्यादा बारिश होने पर शहर के करीब 30% इलाकों में पानी भरने की आशंका रहती है। वजह-शहर के 75% इलाके में बारिश के पानी की निकासी के लिए कोई ड्रेनेज सिस्टम नही है। शहर को 1620 किमी के ड्रेनेज सिस्टम की जरूरत है, लेकिन है सिर्फ 451 किमी ही। शहर में करीब 30 किमी लंबे प्राकृतिक नाले हैं। सड़क के साथ ड्रेनेज की व्यवस्था न होने से पानी सड़कों पर ही बहता है और बारिश के बाद सड़कें खराब हो जाती हैं।

    प्लानिंग की हकीकत… 30 करोड़ की डीपीआर बनाई

    2006 में बाढ़ के बाद ड्रेनेज सिस्टम को सुधारने के लिए निगम ने 30 करोड़ की डीपीआर बनाई थी। इसमें अशोका गार्डन, पंचशील नगर आदि के नालों का निर्माण किया गया था। जेएनएनआरयूएम के तहत 2011 में डीपीआर बनी। अनुमानित लागत बताई गई 1200 करोड़ । इसे मंजूरी नहीं मिली। 2015 में निगम की सीमा में नए क्षेत्रों को शामिल किया गया। शहर का क्षेत्रफल 285 वर्ग किमी से 412.57 वर्ग किमी हो गया। केंद्र का प्रोजेक्ट अमृत आने के बाद फिर डीपीआर बनी, जो 1600 करोड़ तक पहुंच गई। लेकिन 150 करोड़ रही नाले -नालियांे के लिए ही स्वीकृत हो पाए।

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    1973 में लिया सबक… सड़क ऊंची की तो फिर कभी नहीं डूबा तलैया

    वर्ष 1973 में शहर में जुलाई के पहले सप्ताह में भारी बारिश हुई। बड़े तालाब के ओवरफ्लो होने का नतीजा यह हुआ कि तलैया इलाका डूब में आ गया। इसके बाद तत्कालीन निगम प्रशासक एमएन बुच की अगुआई में तलैया के पास सड़क की ऊंचाई बढ़ाई गई। उसके बाद आज तक तलैया क्षेत्र नहीं डूबा।

    महापौर और उनकी प्लानिंग..

    • उमाशंकर गुप्ता : 1994-99… प्रदेश सरकार ने भोज वेटलैंड प्रोजेक्ट की घोषणा की। 98 करोड़ रुपए के इसके लिए गुप्ता के कार्यकाल में प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनी।
    • विभा पटेल : 1999-2004…भोज वेटलैंड प्रोजेक्ट चल रहा था, इसलिए निगम ने कोई बड़ा प्रोजेक्ट हाथ में नहीं लिया।
    • सुनील सूद : 2004-2009.. केंद्र का जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट आया। इस प्रोजेक्ट में 30 करोड़ से नालों का चैनेलाइजेशन शुरू हुआ।
    • कृष्णाा गौर : 2009-2014 नालों के चैनेलाइजेशन को रफ्तार मिली।
    • आलोक शर्मा : 2015-2020 ‘अमृत’ में ड्रेनेज नेटवर्क के लिए अलग से राशि दी।