भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में रखे 350 मीट्रिक टन (Chemical waste) रासायनिक कचरे का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। इसके कारण भोपाल की 15 कॉलोनियों का पानी हुआ था जहरीला.
भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में रखे 350 मीट्रिक टन (Chemical waste) रासायनिक कचरे का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। इसे नष्ट करने के लिए केंद्र सरकार 129 करोड़ रुपए देगी। अब 27 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई में केंद्र सरकार को प्रगति की रिपोर्ट विधिवत हलफनामे के साथ पेश करना है। इस रासायनिक कचरा की वजह से फैक्ट्री के आसपास रहने वालों को 39 साल बाद भी परेशानी हो रही है।
एक रिपोर्ट में आसपास के इलाकों का भूमिगत जल जहरीला होने की बात भी सामने आ चुकी है। कारखाने के नजदीक में स्थित 15 नई कॉलोनियों के भूजल में नाइट्रेट, क्लोराइड और कैडमियम मिला था।
इन जगहों में लिमिट से ज्यादा कैडमियम मिला।
रंभा नगर, रिसालदार कॉलोनी, फूटा मकबरा, एकता नगर, दुलीचंद का बाग, न्यू कबाड़खाना, इहले हदीस मस्जिद, सुंदर नगर, शाहीन नगर, निशातपुरा, प्रताप नगर, लक्ष्मी नगर, छोला मंदिर, द्वारका नगर, कृष्णा नगर।

जहरीले कचरे से निपटने के लिए अब तक क्या-क्या हुआ…सिलसिलेवार पढ़िए।
- 2004 – यूनियन कार्बाइड कारखाना परिसर और उसके बाहर फैले जहरीले कचरे से प्रदूषित हुए भूजल और मिट्टी की सफाई के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
- 2005 – रसायन डिपार्टमेंट ने यूका के कचरे से कारखाना के आसपास और अंदर फैले जहरीले कचरे की सफाई के लिए डाव केमिकल्स से 100 करोड़ रुपए मांगे।
- कोर्ट ने कारखाने के आसपास फैले कचरे को साफ करने के निर्देश दिए। रामकी इनवायरो कंपनी लिमिटेड को कचरा एकत्रित करने का काम सौंपा गया।
- 2005 – रामकी इनवायरो ने कारखाना परिसर में कई स्थानों पर रखे गए जहरीले कचरे को इकट्ठा किया। बोरियों में बंद करवाया और कारखाना के बंद शेड में रखवाया।
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- 2006 – यूका के जहरीले कचरे का निपटान कराने के लिए गुजरात के अंकलेश्वर और मध्यप्रदेश के पीथमपुर में भेजे जाने पर चर्चा शुरू हुई।
- 2007 – गुजरात सरकार ने कचरा अंकलेश्वर लाकर नष्ट करने से मना कर दिया।
- 2008 – यूका का 40 टन जहरीला कचरा पीथमपुर निपटान के लिए भेजा गया। लेकिन स्थानीय विरोध के कारण उसका निपटान नहीं हो सका। पूरा कचरा पीथमपुर में डंप किया गया।
- 2009 – नीरी, एनजीआरआई और सीएसई ने जहरीले कचरा और उससे हुई मिट्टी प्रदूषण और भूजल प्रदूषण पर जांच शुरू की। मिनिस्ट्री ऑफ पेट्रोलियम केमिकल्स ने दोबारा यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के जहरीले कचरे के निपटान के लिए केंद्र सरकार को 350 करोड़ रुपए का प्रस्ताव दिया। पीथमपुर में कचरा निपटान की योजना समाप्त की गई।
- 2011 – कचरा निपटान के लिए समीक्षा समिति का गठन किया गया। नीरी और एनजीआरआई की रिपोर्ट्स में अन्य रिसर्च रिपोर्ट के नतीजों से मिलान न होने के कारण नए सिरे से जांच कराने का फैसला लिया गया।
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- 2012 – कचरे की जांच नागपुर स्थित रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला में कराकर, उसका निपटान करने के लिए नागपुर भेजने का प्रस्ताव बना। महाराष्ट्र सरकार ने मना कर दिया। पर्यावरण सुधार पर चर्चा हुई। इस दौरान कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी पर गठित ग्रुप ऑफ मिनिसटर्स ने कचरा निपटान कराने के निर्देश दिए।
- राज्य सरकार ने जर्मनी की जीआईजेड कंपनी से कचरा निपटान पर चर्चा की। मंजूरी मिलने से पहले ही कंपनी ने कचरा निपटान करने से मना कर दिया। दोबारा पीथमपुर में कचरा निपटान करने का प्रस्ताव बना।
- 2013 – सुप्रीम कोर्ट ने इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी एंड रिसर्च (आईआईटीआर) लखनऊ को यूका फैक्ट्री परिसर और बाहर से भूजल के नमूने और कारखाना परिसर के भूजल के नमूनों की जांच करने का जिम्मा सौंपा। नमूनों की जांच में आईआईटीआर के वैज्ञानिकों ने मिट्टी और पानी में जहरीले रसायन होने की पुष्टि की।
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- कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद पीथमपुर के इंसीरेनेटर में यूका के कचरे जैसा जहरीला कचरा जलाकर ट्रायल करने के निर्देश दिए। इसके तहत पीथमपुर में कोच्चि (केरल) की एक कंपनी से 10 मीट्रिक टन कचरा मंगाकर निपटान शुरू किया गया। इसके बाद से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है।

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रिपोर्ट में यह खुलासा, इसलिए संगठन भी उठा रहे मांग
यूनियन कार्बाइड कारखाना परिसर में रखे जहरीले रासायनिक कचरा से क्षेत्र की 15 नई कॉलोनियों का भूजल (ग्राउंड वाॅटर) दूषित हो गया है। यह खुलासा साल 2018 में CSIR -इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईटीआरसी) लखनऊ की रिपोर्ट में हुआ था। टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च की टीम ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कार्बाइड कारखाना के नजदीक स्थित 20 नई कॉलोनियों से ग्राउंड वॉटर का सैंपल लिया था। इनमें से 6 कॉलोनियों के ग्राउंड वाॅटर में नाइट्रेट और क्लोराइड तय लिमिट से ज्यादा मिला है।
रिपोर्ट के मुताबिक शहर के रंभा नगर, रिसालदार कॉलोनी समेत 15 बस्तियों के लोग दूषित पानी पी रहे हैं। इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के में 67 फीट से लेकर 1,689 फीट तक की गहराई वाले बोरवेल से पानी के सैंपल लिए गए थे। इन 20 सैंपल्स में से 15 में हैवी मैटल कैडमियम मिली थी। जबकि 13 सैंपल में लैड और 7 में निकिल मिला था।
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मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक पीने के पानी के लिए जो मानक है उसके अनुसार अधिकतम 0.003 मिली ग्राम कैडमियम युक्त पानी का उपयोग पीने में किया जा सकता है। लेकिन 15 बस्तियों के पानी में कैडमियम की मात्रा 0.004 से 0.006 के बीच मिली थी। इसके अलावा, 6 कॉलोनियों के भूजल में नाइट्रेट और क्लोराइड ज्यादा मिला था।
अब जानिए किन कॉलोनियों का भूमिगत जल खराब है।
- ग्रीन पार्क कॉलोनी, संत कंवरराम नगर, चौकसे नगर, रंभा नगर, रिसालदार कॉलोनी, राजगृह कॉलोनी, फूटा मकबरा, एकता नगर, दुलीचंद का बाग, नया कबाड़खाना, इहले हदीस मस्जिद, सुंदर नगर, शाहीन नगर कॉलोनी, निशातपुरा, प्रताप नगर, लक्ष्मी नगर, चंदन नगर, छोला मंदिर, द्वारका नगर और कृष्णा नगर।