सनातन संस्कृति में कुछ तिथियों पर व्रत करने का विशेष महत्व है। इन तिथियों में से एक पूर्णिमा तिथि है। पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा अपने पूर्ण स्वरूप में होता है। इस अवस्था में अपनी अद्भुत छटा के साथ चांदनी को धरती पर बिखेरता है। हर महीने एक पूर्णिमा आती है और हर पूर्णिमा का अलग महत्व होता है। किंतु अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का विशेष शास्त्रोक्त महत्व है। इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं के साथ धरती पर अमृत बरसाता है। इसलिए लोग इस दिन रात में खीर बनाकर तारों भरी चांदनी रात में बरसते अमृत की आस में रखते हैं और उसके बाद अमृत से युक्त खीर को ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि इस खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं इसलिए इसमें कई रोगों का समूल नष्ट करने की शक्ति होती है।
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शरद पूर्णिमा की शास्त्रोक्त मान्यताएं
शरद पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण के महारास का विशेष स्मरण होता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसी मोहक बांसुरी बजाई कि गोपियां बांसुरी के मधुर स्वर की ओर खिंची चली गई। श्राीकृष्ण ने अपनी माया से शरद पूर्णिमा की रात को हर गोपी के लिए एक अलग कृष्ण का का निर्माण किया। पूरी रात श्रीकृष्ण गोपियों के साथ नृत्य करते रहे। यह नृत्य महारास के नाम से प्रसिद्ध हुआ। श्रीकृष्ण ने उस रात को ब्रह्माजी की एक रात के बराबर लंबा कर दिया था। ब्रह्माजी की एक रात मानव की करोड़ों रातों के बराबर होती है।
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शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन मां महालक्ष्मी की पूजा का भी प्रावधान है और इस पूजा को कोजागरी लक्ष्मी पूजा के नाम से जाता जाता है। देवी लक्ष्मी शरद पूर्णिमा की रात को आकाश में विचरण करती रहती है और कहती है ‘को जाग्रति’। इसका मतलब होता है कि कौन फिलहाल जाग्रत अवस्था में है। जो व्यक्ति इस रात को जगा हुआ होता है माता लक्ष्मी उसको बहुमूल्य उपहार देती है।
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शरद पूर्णिमा की कथा
शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार एक साहुकार की दो बेटियां थीं। उसकी दोनों बेटियां हमेशा पूर्णिमा का व्रत रखती थीं,किंतु छोटी पुत्री हमेशा व्रत अधूरा करती थी। इसके परिणामस्वरूप छोटी बेटी की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने जब जानकार पंडितों से इस दुर्भाग्य का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि तुम हमेशा पूर्णिमा का व्रत अधूरा करती थीं, जिसके कारण तुम्हारी संतानें जन्म लेते ही मर जाती हैं। यदि तुम पूर्णिमा का व्रत विधि-विधान के साथ करोगी तो तुम्हारी संतानें अवश्य जीवित रहेगी।
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उसने प्रकांड पंडितों की सलाह पर विधिपूर्वक पूर्णिमा व्रत का पालन किया। कुछ दिनों बाद उसको एक पुत्र का प्राप्ति हुई, लेकिन वह भी जन्म लेने के साथ ही मर गया। अब उसने उस मृत बच्चे को एक पाट पर लिटाया और उसके ऊपर एक कपड़ा डाल दिया। उसके बाद वह अपनी बड़ी बहन को बुलाकर लाई और वही पाट बैठने के लिए अपनी बहन को दे दिया। बड़ी बहन जब उसके ऊपर बैठने लगी तो उसके वस्त्र उस मृत बच्चे से छू गए। वस्त्र के छूते ही बच्चा रोने लगा। बच्चे के रोने की आवाज सुनकर बड़ी बहन ने छोटी से कहा कि तुम मेरे ऊपर कलंक लगाना चाहती थी कि मेरे बैठने से यह मर गया। तब छोटी बहन ने कहा कि यह तो पहले से ही मृत था, तुम्हारी पुण्य और भाग्य से यह जीवित हो गया।
https://youtu.be/Avq6CqRweSQ