मध्यप्रदेश सरकार ने मीसा बंदियों की पेंशन 30 हजार रु. प्रतिमाह कर दी है।नई दिल्ली के मप्र भवन में इनके लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह रुकने की व्यवस्था होगी।
मध्यप्रदेश सरकार ने मीसा बंदियों की पेंशन 25 हजार से बढ़ाकर 30 हजार रु. प्रतिमाह कर दी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मध्यप्रदेश दौरे से एक दिन पहले यह घोषणा की।भोपाल में CM हाउस में सोमवार को लोकतंत्र सेनानी सम्मेलन में उन्होंने कहा कि जिनको 5 हजार रु. सम्मान निधि मिलती है, उन्हें अब 8 हजार रुपए मिलेंगे।
दिवंगत सेनानियों के परिवार को दी जाने वाली निधि 8 हजार से बढ़कर 10 हजार रु. की जाएगी। मीसाबंदी के जो शेष लोग हैं, उन्हें 15 अगस्त को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। नई दिल्ली के मप्र भवन में इनके लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह रुकने की व्यवस्था होगी।
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जिलों में विश्राम गृह में 2 दिन तक 50% शुल्क के साथ रुकने की व्यवस्था होगी। कोई बीमारी हुई तो संपूर्ण इलाज मध्यप्रदेश सरकार कराएगी। मुख्यमंत्री ने लोकतंत्र सेनानियों के परिचय पत्र एक बार और चर्चा कर फाइनल करने के लिए कहा है।
क्या है मीसा और कौन है पहला मीसाबंदी .?
आज के 45 वर्ष पूर्व 25-26 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाया था। इमरजेंसी का नाम आते ही मीसा की भी चर्चा होने लगती है। क्योंकि आपातकाल की घोषणा के तुरंत बाद से ही देश भर में मीसा कानून के तहत गिरफ्तारियां शुरू हो गई थी। गिरफ्तार होने वालों में छात्रनेता, मजदूर नेता, प्राध्यापक, राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता विपक्षी दलों के नेता और इंदिरा गांधी की राजनीतिक आलोचना करने वाले शामिल थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) के सहयोगियों-शुभचिंतकों के साथ ही समाजवादी विचारधारा को मानने वाले छात्रों-नौजवानों की संख्या इसमें ज्यादा थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विद्यार्थी परिषद माकपा एवं एसएफआई से जुड़े लोगों पर भी मीसा का कहर बरपा गया।
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भारत सरकार ने मीसा कानून को विशेषतः देश के पहाड़ी हिस्सों में चल रहे हिंसक आंदोलनों को दबाने के बनाया था। आंदोलनकारियों को लंबे समय के लिए गिरफ्तार कर जेल में रखने के लिए इंदिरा सरकार ने यह कानून बनाया था। वैसे इस कानून के अलावा भारत सरकार के पास कई और भी काले कानून थे जिससे आंदोलनकारियों को उत्पीड़ित किया जाता रहा। जैसे भारत रक्षा कानून (एनएसए), भारत सुरक्षा नियम जिसे डीआईआर कहा जाता था। इनका प्रयोग यदा-कदा राज्य सरकारें अपने अपने राज्यों में करती रही थी