कोरोना संक्रमण काल में सरकारी और निजी अस्पतालों में पैर रखने तक की जगह नहीं है। कोविड-19 मरीजों को ऑक्सीजन तो दूर की बात बेड भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। ऐसे में बालाघाट जिले के लालबर्रा के ग्रामीणों ने आत्मनिर्भरता की एक अनूठी मिसाल पेश करते हुए बिना किसी सरकारी मदद के गांव में ही कोविड-19 सेंटर बनाकर एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। दरअसल, गांव के एक कारोबारी की बेटी को बालाघाट में ठीक से इलाज नहीं मिला तो यह रास्ता निकाला गया। इस अस्पताल में अभी तक किसी की कोविड से मौत नहीं हुई है।
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ग्रामीणों ने गांव के सरकारी छात्रावास को कोविड-19 सेंटर में बदलते हुए यहां पहले 30 बेड की व्यवस्था की। मरीजों को ऑक्सीजन की कमी दूर करने के लिए पूरे गांव से चंदा कर 30 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मशीन खरीद ली। इससे अब गांव में ही कोविड-19 मरीजों को यहां सुगमता से उपचार मिल रहा है। यहां तक कि गांव वाले चंदा एकत्रित करके यहां भर्ती किए गए मरीजों के भोजन और नाश्ते की भी व्यवस्था कर रहे हैं।
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दिन में दो बार आते हैं सरकारी डॉक्टर
लालबर्रा में बनाए गए इस कोविड-19 सेंटर में दिन में दो बार सरकारी डॉक्टर आते हैं और यहां भर्ती लगभग 20 से ज्यादा मरीजों का उपचार करके चले जाते हैं। ग्रामीणों की पहल पर इस कोविड-19 सेंटर में बेहतर उपचार भी प्रारंभ हो गया है। इस छोटे से गांव में भी तमाम सुविधा उपलब्ध हो रही है जो एक निजी और सरकारी अस्पताल में कोरोना संक्रमित मरीजों को उपलब्ध कराई जाती है। ग्रामीणों के जुनून को देखकर विधायक और प्रशासन ने भी सहयोग शुरू किया । लालबर्रा जैसे छोटे से गांव में ग्रामीणों ने जिस तरह से अपने जुनून के बूते छात्रावास को कोविड-19 सेंटर में बदला है, उसको देखकर विधायक गौरीशंकर बिसेन ने भी ग्रामीणों की मदद करते हुए अपनी तरफ से पांच ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मशीन दी हैं।
बालाघाट जिला अस्पताल में देखी परेशानी
कुछ दिन पहले गांव के एक व्यवसायी की बेटी कोरोना संक्रमित हो गई। उसे बालाघाट जिला अस्पताल ले जाया गया। वहां बड़ी परेशानी के बाद उपचार मिल पाया था। यह बात सभी ग्रामीणों को भी पता चली। ऐसे में गांव के डॉक्टर अरुण लांगे की पहल पर सभी ग्रामीणों ने पहल कर कोविड केयर सेंटर शुरू कर दिया। राहत की बात है कि 30 बिस्तर वाले इस सेंटर पर अभी तक कोई मौत नहीं हुई है। महज 10 हजार की आबादी वाले इस गांव में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए ग्रामीण एकजुट हो गए है।
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