मध्य प्रदेश / 53 साल पहले विजयाराजे ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था, अब पोते ज्योतिरादित्य ने सरकार को संकट में डाला

मध्य प्रदेश / 53 साल पहले विजयाराजे ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था, अब पोते ज्योतिरादित्य ने सरकार को संकट में डाला

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मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया परिवार 53 साल पुराने इतिहास को दोहरा रहा है। 1967 में विजयाराजे सिंधिया की वजह से कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई थी और अब उनके पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कमलनाथ सरकार संकट में घिर गई है।

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1967: विजयाराजे को डीपी मिश्रा ने 15 मिनट इंतजार करवाया, कांग्रेस को यही भारी पड़ा

  • 1967 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार में डीपी मिश्र मुख्यमंत्री थे। ग्वालियर में हुए छात्र आंदोलन को लेकर विजयाराजे की मिश्रा से अनबन हो गई थी।
  • 1967 में ही विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने थे। टिकट बंटवारे और छात्र आंदोलन के मुद्दे पर बात करने के लिए विजयाराजे पचमढ़ी में हुए कांग्रेस युवक सम्मेलन में पहुंचीं थीं। इस सम्मेलन का उद्धाटन इंदिरा गांधी ने किया था।
  • मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार विजयधर श्रीदत्त बताते हैं, ”पचमढ़ी में डीपी मिश्रा ने विजयाराजे को 15 मिनट तक इंतजार करवाया। राजमाता को यह इंतजार अखरा था, उन्हें लगा कि डीपी मिश्रा महरानी को उनकी हैसियत का अहसास करवाना चाहते थे। विजयाराजे के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था।”
  • श्रीदत्त कहते हैं- विजयाराजे ने छात्र आंदोलनकारियों पर गोलीबारी का मुद्दा उठाया और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर ग्वालियर एसपी को हटाने की मांग भी की थी। लेकिन, मुख्यमंत्री ने सिंधिया की बात नहीं मानी।”
  • पचमढ़ी के घटनाक्रम के बाद विजयाराजे ने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ दी। वे गुना संसदीय सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर उतरीं और चुनाव जीता।
  • चुनाव के बाद 36 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी और विजयाराजे ने इन विधायकों के समर्थन से सतना के गोविंदनारायण सिंह को सीएम बनवा दिया। इसी तरह मध्य प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी और डीपी मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ा था।
  • सियासी संकट के बीच CM कमलनाथ ने राज्यपाल को लिखा पत्र, छह मंत्रियों को तुरंत हटाने की मांग की

2020: ज्योतिरादित्य ने सड़कों पर उतरने की धमकी दी, कमलनाथ बोले- उतर जाएं

  • 13 दिसंबर 2018 को राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की बजाए कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। राहुल ने तब कहा था कि समय और सब्र दो सबसे बड़े योद्धा हैं। लेकिन, ज्योतिरादित्य और कमलनाथ के बीच दरार यहीं से बढ़ी।
  • ज्योतिरादित्य लगातार मध्य प्रदेश सरकार के प्रति आक्रामक रुख अख्तियार करते गए। उन्होंने अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का समर्थन किया था।
  • ज्योतिरादित्य ने इसी साल फरवरी में वचनपत्र के वादों को पूरा करने पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि वादे पूरे नहीं हुए तो सड़कों पर उतरेंगे। इसके कुछ दिनों बाद ही सोनिया से मिलकर लौट रहे कमलनाथ से मीडिया ने ज्योतिरादित्य के बयान पर सवाल किया कि वे सड़कों पर उतरने की बात कह रहे हैं? कमलनाथ से जवाब दिया- उतर जाएं..। यही बात ज्योतिरादित्य को नागवार गुजरी।
  • 9 मार्च को कमलनाथ राज्यसभा चुनाव को लेकर सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे। मुलाकात के बाद मीडिया ने पूछा कि ज्योतिरादित्य को राज्यसभा भेजने पर कोई बात हुई, तो कमलनाथ का जवाब था- कोई बात नहीं हुई।
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  • इसी जवाब के चंद घंटों बाद 6 मंत्रियों समेत सिंधिया समर्थक 17 विधायकों के फोन बंद हो गए। ये सभी बेंगलुरु चले गए। अगले ही दिन इन सभी ने इस्तीफे सौंप दिए। इनके अलावा 3 अन्य कांग्रेस विधायकों ने भी अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को भेज दिया।
  • सिंधिया समर्थकों के इस्तीफे के बाद कमलनाथ सरकार के सामने सत्ता बचाने की चुनौती आ गई है। माना यह जा रहा है कि भाजपा विधानसभा सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाकर कांग्रेस सरकार गिराने की कोशिश कर सकती है
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