जानिए कैसे पड़ा था रेलवे स्टेशन का नाम हबीबगंज! अब बदलकर किया गया रानी कमलापति स्टेशन, क्या है पूरी कहानी

जानिए कैसे पड़ा था रेलवे स्टेशन का नाम हबीबगंज! अब बदलकर किया गया रानी कमलापति स्टेशन, क्या है पूरी कहानी

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हबीबगंज देश में पहला आईएसओ-9001 सर्टिफाइड रेलवे स्टेशन है. यह स्टेशन भारत की पहली सर्टिफाइड ट्रेन शान-ए- भोपाल एक्सप्रेस का हेडक्वार्टर भी है, जहां कई बड़ी ट्रेनों का स्टॉपेज है. बंसल ग्रुप ने इस स्टेशन का री-डवलपमेंट किया है.

भोपाल के पहले वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन हबीबगंज (Habibganj Station) का नाम जल्द ही रानी कमलापति स्टेशन (Rani Kamalapati Ralway Station) हो जाएगा. 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी आधिकारिक घोषणा भी कर देंगे. राज्य के परिवहन विभाग ने स्टेशन का नाम बदलने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था, जिसे शुक्रवार को मंजूरी दे दी गई. रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ के मुखिया निजाम शाह की विधवा और अंतिम आदिवासी गोंड शासक थीं, और अब इस स्टेशन को उन्हीं के नाम से पहचाना जाएगा.

15 नवंबर को ही मोदी सरकार ने जनजातीय गौरव दिवस मनाने का ऐलान किया है. यह एक हफ्ते चलेगा, जिसमें भारत के अनुसूचित जनजाति के गौरव को दिखाया जाएगा. गोंड भारत का सबसे बड़ी आदिवासी समुदाय है, जिसमें 1.2 करोड़ से ज्यादा आबादी है. भाषाई रूप से, गोंड द्रविड़ भाषा परिवार की दक्षिण मध्य शाखा के गोंडी-मांडा उपसमूह से संबंधित है. इस रेलवे स्टेशन पर अब यात्रियों को शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, हॉस्पिटल, मॉल, स्मार्ट पार्किंग, हाई सिक्योरिटी समेत कई आधुनिक सुविधाएं मिलेंगी.

कब बना हबीबगंज रेलवे स्टेशन

ट्रेनों में ग्रीन टॉयलेट बनाने का कान्सेप्ट शुरू करने वाले हबीबगंज स्टेशन का निर्माण आजादी से पहले अंग्रेजों ने करवाया था. 1979 में इसका विस्तार हुआ था. 1901 में भारत की 42 रियासतों के स्वामित्व वाले रेलवे को जोड़कर इंडियन रेलवे बना. आजादी के समय की बात करें तो इस दौरान भारतीय रेलवे का 55 हजार किलोमीटर का नेटवर्क था. 16 अप्रैल 1853 बॉम्बे से 14 कोच और 400 पैसेंजर के साथ भारत की पहली ट्रेन ठाणे के लिए रवाना हुई. इस ट्रेन ने 34 किलोमीटर की दूरी तय की. इसके बाद भारत ने नए युग की ओर पहला कदम तब रखा जब उसने स्टीम इंजनों का निर्माण शुरू हुआ.

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राजपूताना मालवा के अजमेर वर्कशॉप में पहला स्टीम लोको नंबर F-734 1895 बनाया गया था. बाद में बढ़ती जरुरतों को महसूस करते हुए 1901 में रेलवे बोर्ड का गठन किया गया. आजादी के बाद बड़े शहरों को जोड़ने के लिए कई लाइनों को री-रूट किया गया और नई लाइनें बनाई गईं. भारत की 42 रियासतों के स्वामित्व वाले रेलवे को जोड़कर इंडियन रेलवे (Indian Railways) का गठन हुआ. 1947 में आजादी के बाद भारतीय रेल का 55 हजार किलोमीटर का नेटवर्क था. 1952 में मौजूदा रेल नेटवर्क को एडमिनिस्ट्रेटिव पर्पज के लिए 6 जोन में डिवाइड किया गया. इसके बाद कई स्टेशन बनाए गए जिनमें हबीबगंज भी शामिल था, 1979 में हबीबगंज रेलवे स्टेशन का निर्माण किया गया.

आखिर क्यों नाम पड़ा हबीबगंज?

हबीबगंज का नाम भोपाल के नवाब हबीब मियां के नाम पर रखा गया था. पहले इसका नाम शाहपुर था लेकिन साल 1979 में रेलवे ने विस्तार करके नाम हबीबगंज रखा. उस समय एमपी नगर का नाम गंज हुआ करता था तब दोनों को जोड़कर हबीबगंज रखा गया था. हबीब मियां ने 1979 में स्टेशन के विस्तार के लिए अपनी जमीन दान में दी थी. इसके बाद इसका नाम हबीबगंज रखा गया था. ISO प्रमाण पत्र हासिल करने वाला वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन हबीबगंज के आसपास की सुंदरता और आसपास की हरियाली और झीलों का चलते इसकी सुंदरता दोगुनी हो जाती है.

गांव का नाम था हबीबगंज

‘चौथा पड़ाव’ किताब के लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर ने बातचीत में दैनिक भास्कर को बताया कि हबीबगंज गांव का नाम था। हबीबगंज नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि यहां की हरियाली और झीलें इसकी सुंदरता को बढ़ा देती थी. अरबी भाषा में हबीब का अर्थ होता है प्यारा और सुंदर. भोपाल के नवाब की बेगम ने यहां की हरियाली और झीलों के बीच बसे इस गांव का नाम हबीबगंज रखा था. जब रेलवे लाइन बिछाई गई, तब इटारसी-भोपाल के बीच बुधनी, बरखेड़ा, औबेदुल्लागंज और मंडीदीप स्टेशन बनाए गए थे. इसके एग्रीमेंट में था कि यह रेल लाइन ब्रॉडगेज होगी.

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किताब के मुताबिक भोपाल नवाब परिवार की मिल्कियत वाली जमीनों में 122.36 किलोमीटर रेलवे लाइन भी थी. होशंगाबाद (नर्मदा नदी के पुल) से भोपाल तक 70.80 किमी रेल लाइन के लिए बेगम शाहजहां ने 1 नवंबर 1884 को जमीन दी थी. इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के साथ एग्रीमेंट किया था. इसके बाद भोपाल स्टेट रेलवे बनाया गया था. इसमें बेगम शाहजहां ने 50 लाख रुपए दान दिए थे. बेगम शाहजहां ने भोपाल से उज्जैन के बीच 51 किमी रेल लाइन के लिए भी 1 जनवरी, 1891 को जमीन दी थी. उन्होंने जमीन के साथ रेलवे लाइन के लिए 20.80 लाख रुपए भी दिए थे. इतनी ही राशि सिंधिया राजघराने ने दी थी, क्योंकि उज्जैन के हिस्से में भी उनकी मिल्कियत थी.

बंसल ग्रुप ने 100 करोड़ में रीडवलप किया

14 जुलाई 2016 की तारीख भारतीय रेल के लिए ऐतिहासिक दिन था. पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत इंडियन रेलवे ने 1979 में तैयार हुए हबीबगंज स्टेशन के मॉडर्नाइजेशन के लिए पहला कॉन्ट्रैक्ट किया. 5 सालों तक चले मॉडर्नाइजेशन प्रोजेक्ट के बाद जुलाई 2021 में हबीबगंज स्टेशन बनकर तैयार हो गया. इस स्टेशन में वर्ल्ड क्लास सुविधाएं है जिसके लिए करीब 100 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं. यात्रियों को किसी तरह की कोई परेशानी न हो, इसे ध्यान में रखते हुए सुविधाएं देने की कोशिश की गई है. आने वाले समय में स्टेशन को ब्रिज के जरिए तैयार हो रहे मेट्रो स्टेशन से भी जोड़ा जाएगा.

हबीबगंज रेलवे स्‍टेशन को एयरपोर्ट की तर्ज पर विकसित करने के लिए भारतीय रेलवे ने बंसल ग्रुप के साथ समझौता किया. तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु (Suresh Prabhu) की उपस्थिति में हबीबगंज रेलवे स्‍टेशन के पुनर्विकास और आधुनिकीकरण के लिए भारतीय रेल स्‍टेशन विकास निगम लिमिटेड (IRSDC) और बंसल ग्रुप के बीच समझौते पर हस्‍ताक्षर किए गए थे.

हबीबगंज देश में पहला आईएसओ-9001 सर्टिफाइड रेलवे स्टेशन है. यह स्टेशन भारत की पहली सर्टिफाइड ट्रेन शान-ए- भोपाल एक्सप्रेस का हेडक्वार्टर भी है, जहां कई बड़ी ट्रेनों का स्टॉपेज है. हबीबगंज स्टेशन को वर्ल्ड क्लास बनाने का काम मार्च 2017 से शुरू हुआ था. इसे दिसंबर 2018 तक पूरे करने के दावे किए थे. दूसरी डेडलाइन जुलाई 2019 थी, तब भी काम पूरा नहीं हो सका था. फिर 31 दिसंबर 2019 तक काम पूरा करने का दावा किया गया, लेकिन काम तब भी पूरा नहीं हुआ. इसके बाद मार्च 2020 डेडलाइन दी गई, लेकिन फिर भी काम पूरा नहीं हुआ. फिर कोरोना संक्रमण काल आ गया, जिसके कारण काम में देरी हुई.

क्यों खास है हबीबगंज स्टेशन?

मोदी सरकार से साल 2019 में वापसी के बाद यह दूसरा ऐसा स्टेशन था, जिसे आलीशान तरीके से बनाया गया है. पहला गांधीनगर था. इस वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन में एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं हैं. इसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत 450 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है. आधुनिक स्टेशन में यात्रियों के आगमन और प्रस्थान के मुताबिक यात्रियों के आने-जाने की व्यवस्था होगी. प्लेटफॉर्म्स, लाउंज, कॉनकोर्स, रिटायरिंग रूम में बैठने की पर्याप्त व्यवस्था होगी.

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वहीं भोपाल लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखने की मांग की है. ठाकुर ने गुरुवार को ट्वीट किया, ‘भोपाल में 15 नवंबर 2021 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जनजातीय गौरव दिवस पर आना हमारे भोपाल के लिए शुभ संकेत हैं. मुझे विश्वास है कि मोदी जी हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वापपेयी जी के नाम पर रखने की घोषणा करेंगे.’ अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती पर यहां आयोजित विशाल आदिवासी सम्मेलन में भी शामिल होंगे.

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