तिरुवनंतपुरम में ओणम से ठीक पहले केरल में 624 करोड़ रुपये की शराब की रिकॉर्ड बिक्री हुई, जो 2021 में 529 करोड़ रुपये थी। राज्य में शराब के एकमात्र थोक व्यापारी केरल स्टेट बेवरेजेज कॉरपोरेशन के अनुसार, शुक्रवार को एक सप्ताह के सामनेआंकड़े.
ओणम से ठीक पहले केरल में 624 करोड़ रुपये की शराब की रिकॉर्ड बिक्री हुई, जो 2021 में 529 करोड़ रुपये थी। राज्य में शराब के एकमात्र थोक व्यापारी केरल स्टेट बेवरेजेज कॉरपोरेशन के अनुसार, शुक्रवार को एक सप्ताह के आंकड़े सामने आए जो ओणम के पहले दिन के साथ समाप्त हुआ जो बुधवार को था। कोल्लम, इरांजालकुडा, चेरतलाई और पय्यान्नूर में चार खुदरा दुकानों में एक करोड़ रुपये से अधिक की बिक्री हुई, और कोल्लम 1.06 करोड़ रुपये की बिक्री के साथ पहले नंबर पर रहा। केरल में शराब की खपत के अध्ययन से पता चलता है कि राज्य की 3.34 करोड़ आबादी में से लगभग 32.9 लाख लोग शराब का सेवन करते हैं, जिसमें 29.8 लाख पुरुष और 3.1 लाख महिलाएं शामिल हैं। रोजाना करीब पांच लाख लोग शराब का सेवन करते हैं। इसमें 1043 महिलाओं समेत करीब 83,851 लोग शराब के आदी हैं। शराब की बिक्री से राज्य के खजाने में सबसे अधिक राजस्व प्राप्त होता है।
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बता दें कि केरल में ओणम पर्व मलयाली नव वर्ष के पहले महीने में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। वर्तमान समय में इस पर्व को केवल केरल की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में जाना जाता है लेकिन राजा बलि और ओणम की कहानी केवल केरल से नहीं जुड़ी है। ओणम पर्व की कहानी भारत के दक्षिणी राज्यों के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों के साथ भी जुड़ी हुई है। ओणम पर्व का फसल की कटाई से भी संबंध है। किसान इस मौके पर अपनी फसल के लिए ईश्वर का आभार जताते हैं। अच्छी फसल की प्रसन्नता में और आगे भी अच्छी फसल की आशा में किसान इस पर्व को मनाते हैं।
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केरल में इस मौके पर कई आयोजन होते हैं जो काफी प्रसिद्ध हैं जिनमें कथकली नृत्य और सर्प नौका दौड़ शामिल है।
केरल के इस अहम पर्व को 10 दिनों तक मनाने की परंपरा है। जिसके हर दिन भिन्न-भिन्न प्रकार की परंपराएं और रीति-रिवाज पूरे किए जाते हैं। भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा के साथ आरंभ होने वाले इस पर्व में मशहूर नौका दौड़ होती है, नए-नए पकवान बनते हैं और दसवें दिन राजा बलि के आगमन की तैयारी चलती रहती है। कुल-मिलाकर पूरे 10 दिन चहुंओर खूब उमंग रहती है। धन-धान्य और फसलों को समर्पित रौनक भरे इस अवसर पर फूलों की रंगोली का भी अपना महत्व रहता है। इसे पकलम या पुष्पकालीन भी कहा जाता है। कहते हैं कि इस पर्व के आखिरी यानी दसवें दिन राजा बलि अपनी प्रजा की हाल-खबर लेने आते हैं, इसलिए स्वागत में फूलों की रंगोली व कालीन बनाई जाती है
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