जोबट में भाजपा को जीत कांग्रेस गढ़ में ही चित!,BJP से 4 दिन में ही मिल गया था टिकट

    जोबट में भाजपा को जीत
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    जोबट में एक बार फिर से लेडी ही फर्स्ट…। मतदाताओं ने विधानसभा में उलटफेर तो किया, लेकिन अपना विधायक महिला को ही चुना। कांग्रेस की सीट रही जोबट अब भाजपा के खाते में चली गई है। यहां से भाजपा की सुलोचना रावत ने 6 हजार से अधिक मतों से कांग्रेस के महेश पटेल को पराजित कर दिया है।जोबट में भाजपा को जीत

    कांग्रेस से भाजपा में आईं सुलोचना पर भाजपा ने भरोसा जताते हुए हफ्तेभर के भीतर ही अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। भाजपा में बगावत भी हुई, लेकिन बाद में सब थम गया और पूरी पार्टी भाजपा को जिताने में जुट गई। यह सीट कांग्रेस की कलावती भूरिया के निधन के बाद खाली हुई थी।

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    25 साल के राजनीतिक करियर में सुलोचना का यह दूसरा उपचुनाव था। इससे पहले 1996 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जोबट विधानसभा से ही उपचुनाव में जीत के साथ अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। वे जोबट से तीन बार विधायक रह चुकी हैं। वे इस चुनाव को मिलाकर अब तक 5 चुनाव लड़ चुकी हैं। इनमें से सिर्फ एक बार ही हार का सामना करना पड़ा। खास बात यह है कि पिछले 4 चुनाव में से तीन बार कांग्रेस की सुलोचना के सामने भाजपा के माधोसिंह डावर ही थे, इसमें से दो बार सुलोचना ने जीत दर्ज की थी। इस बार वे भाजपा से लड़ीं और जीती भी।

    सुलोचना का राजीतिक सफर
    सुलोचना 1998 में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण राज्य मंत्री भी रहीं। उन्होंने इसके पहले अपना आखिरी विधानसभा चुनाव 3 साल पहले वर्ष 2008 में लड़ा था, जिसमें भाजपा के माधोसिंह डावर को 4 हजार 560 वोटों से शिकस्त दी थी। रावत की नाराजगी पिछले विधानसभा चुनाव से ही देखी जा रही थी। तब कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के कारण सुलोचना के बेटे विशाल रावत ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इस बार भी विशाल ने कांग्रेस से टिकट की मांग की थी। टिकट की दौड़ से बाहर होने के बाद नाराज सुलोचना व विशाल ने 2 अक्टूबर को भाजपा जॉइन कर लिया था।

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    टिकट मिलने का कारण
    भाजपा से टिकट के लिए पूर्व विधायक माधोसिंह डावर प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन पिछले चुनाव में वे कांग्रेस की कलावती भूरिया से 1 हजार 338 वोटों से हार गए थे।

    सुलोचना रावत के पुत्र विशाल रावत ने कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। विशाल को भी अच्छे खासे वोट मिले थे, लेकिन यह सभी कांग्रेस के काटे वोट ही माने गए थे। भाजपा इस बार कोई रिस्क लेना नहीं चाहती थी, इसलिए उन्होंने सुलोचना रावत पर भरोसा जताया है।

    कब-कब चुनाव लड़ी सुलोचना रावत

    वर्ष विधायक नजदीकी प्रतिद्वंद्वी
    1996 सुलोचना रावत (कांग्रेस–जीतीं) दरियावसिंह (भाजपा-हारे)
    1998 सुलोचना रावत (कांग्रेस–जीतीं) माधोसिंह डावर (निर्दलीय-हारे)
    2003 सुलोचना रावत (कांग्रेस-हारीं) माधोसिंह डावर (भाजपा-जीते)
    2008 सुलोचना रावत (कांग्रेस-जीतीं) माधोसिंह डावर (भाजपा-हारे)
    2021 सुलोचना रावत (भाजपा-जीत की ओर) महेश पटेल (कांग्रेस-हार की ओर)

    जानिए… रावत की जमीनी मजबूती

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    • इसके पहले जोबट से ही तीन बार विधायक रहीं।
    • ग्रामीणों के बीच अपनी खुद की अच्छी खासी पहचान।
    • लोगों में परिवार की साफ-सुथरी छवि।
    • भाजपा ने बगावत के सुर को रोका।

    कांग्रेस के महेश पटेल यहां रहे कमजोर

    • आलीराजपुर विधानसभा क्षेत्र से दो बार चुनाव हारे।
    • पूर्व विधायक दिवंगत कलावती के भतीजे दीपक भूरिया को मनाया, लेकिन कार्यकर्ताओं ने दिल से नहीं अपनाया।
    • सुलोचना की साफ-सुधरी छवि और गांव-गांव तक पहचान का तोड़ नहीं निकाल पाए।
    • पटेल ने जीत के लिए सरकार और संगठन के सामने दम-खम से चुनाव लड़ा। नेता-कार्यकर्ता जीत के लिए आश्वस्त करते रहे, लेकिन कई जगह पर उन्हें साथ नहीं मिला।

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