असंतुष्ट इंसान

असंतुष्ट इंसान

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इंसान कभी खुश रह ही नहीं सकता और अगर वह खुश भीे है संतुष्ट नहीं है। आप सोच रहे होंगे की मैं एेसा क्यो कह रही हूँ।
एक चित्र में चित्रित था – जिसमें एक पैदल चलता व्यक्ति साइकिल की कल्पना कर रहा है। और साइकिल वाला मोटर साइकिल की, इसी क्रम में हर व्यक्ति जो उसके पास है उससे ज्यादा की कल्पना करता है।

संसार में जन्म लेने वाला कोई भी प्राणी अपनें साथ कुछ नहीं लाता नहीं लेकर जाता है। परंतु इंसान का जीवन इस तरह से रचा गया है कि जब तक वो जिन्दा रहेगा, पूरे जीवन भर पाने की चाह में भागता रहता है और अपनी खुशी को खो देता है। जिसके कारण उसकी खुशी कही लुप्त हो जाती है। खुश रह कर भी नाखुश रहने लगता है।

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इस बात को समझने के लिए एक छोटी सी कहानी का उदहारण देना चाहती हूँ।
राजा के दरबार में एक खुशहाल व्यक्ति रहता था। वह पुर्ण रूप से सुखी था, उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई दुःख नहीं था। एक बार दरबार में इस बात पर चर्चा हुई है कि कौन इस व्यक्ति को दुखी व परेशान कर सकता हैं। और राजा ने कहा की जो इसे दुखी करेगा उसे मैं इनाम दुंगा फिर एक दिन मंत्री जी ने उस व्यक्ति के घर पर १०० स्वर्ण मुद्ररा में से ९९ स्वर्ण मुद्ररा वहाँ बिखेर दी और एक मुद्ररा अपने पास रख ली। जब वह व्यक्ति घर आया तो इतनी सारी स्वर्ण मुद्ररा देख कर खुश हुआ । उसने सारी मुद्ररा इखट्टी कर वह गिनने लगा, परंतु १०० मुद्ररा होने में एक कम पाई तो वह इधर-उधर ढूढ़ने लगा और सोचने लगा की एक और मिल जाती तो मेरे पास पूरी १०० स्वर्ण मुद्रराएं हो जाती। अब वह यह सोचकर बहुत दुखी रहने लगा और हर जगह वह एक बची हुई मुद्ररा के बारे में सोचने लगता।

हमारा हाल भी कुछ इसी व्यक्ति के समान है, जो है उससे खुश न होकर जो नहीं है उससे दुखी रहते हैं। परमात्मा ने मानव रूपी अनमोल खजाना दिया है और हम इसे भूलकर और पाने की चाह में अपना समय और खुशीयाँ गंवा रहे हैं..

लेख_केशवी माहेश्वरी

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