19मई2020
Ruparna Dhar भारत में एक्टिंग और क्रिकेट सिर्फ एक प्रोफेशनल फील्ड नही बल्कि एक धर्म की तरह देखा जाता है . लोग एक्टर्स और क्रिकेटर्स को उतना ही प्यार देते है , उतना ही अपना मानते हे जितना की किसी अपने को . यह भावनाये उस हद्द तक होती है , की किसी सेलिब्रिटी क देहांत से , मैं हमारा दुखी हो जाता है . लेकिन ऐसा क्यों होता हे ? एक इंसान जो की हमारे जैसा ही है , एक इंसान जिनसे हम कभी मिले नहीं , न वह हमें जानते है न हम उन्हें . लेकिन फिर भी उनके ख़ुशी में हम खुश और दुःख में हम दुखी हो जातें है . कई बार मैं इतना दुखी हो जाता हे की हम लोगो से चुपके रो भी देते है .
हाल में श्री इरफान खान और श्री ऋषि कपूर जी क देहांत में पुरे भारत ेएवंग विश्व ने अपना दुःख प्रकट किया l सोशियोलॉजी प्रोफेस्सोर्स का मन्ना यह है की हमारे सबसे पसंदीदा सेलिब्रिटी हमारे खुदकके विकास क काफी हद्द तक जुड़े हुए होते हैl हमारी पर्सनालिटी को बनाने में बहुत सारे सकी-कल्चरल फैक्ट्स काम करते है l जैसे की भारत की बात करे , जहाँ कला और कलाकार एक बहुत ही बड़ा महत्वपूर्ण विषय है l हमारे पसंदीदा सिनेमा क अभिनय , अभीभिनेत्री , गाने , कहानी आदि , हमारे बचपन से जुड़े हुए होते है l एक तरीके से यह हमारे बचपन से जुड़ा हुआ हिस्सा है l परदे पर कलाकारों का एक्टिंग की सादगी , उनका प्यार उनका रहें सहन उनका गुसा और हर्र एक छोटी भावनाये हमें बिलकुल अपनी सी लगती है , हमें लगता है यह तो हमारी ही कहानी है l हम अपने आपको उनसे जोड़ लेते है l
जब कोई अपना जाता है तो उसके पीछे कई जिम्मेदारी कई चीज़े होती हे जिनका हमें ध्यान रखना पड़ता है , लेकिन एक सेलिब्रिटी क खेत्र में यह उसकी टीम या परिवार की जिनमन्दारी होती है l यह एक बड़ी वजह हो सकती है हमारे दिल खोलके दुखी होने का
यह टॉपिक अपने आप में काफी काम्प्लेक्स है l हमारी प्स्य्कोलोग्य , हमारा रहें सेहन , पसंद-नापसंद इत्यादि सब मिलकार हमारा पर्सनल्टी बनता है l फिलहाल क लिए हम एहि कहकर खुदको संभाल सकते है की
कला की मृत्यु नहीं होती, कला अमर है, हमेशा हमारे साथ है
विज्ञापनों से हिंदी को बढ़ता खतरा
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