अब दिल्ली के पानी मे भी ज़हर

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हाल में किये गए एक शोध से यह निष्कर्ष निकला

जलाशयों में लेड, कैडमियम, निकेल, कॉपर व जिंक जैसे जहरीले तत्वों की मात्रा में इजाफा हो रहा है। हालांकि शोध इस बात के लिये नहीं था कि पानी जहरीले तत्वों की मात्रा कितनी है, लेकिन शोध के परिणाम से पता चला है कि जलाशयों ने ऐसे तत्वों की मात्रा में बढ़ोत्तरी हो रही है।

दरअसल, शोध का उद्देश्य यह पता लगाना था कि जलाशयों में मौजूद जीवाणुओं (बैक्टीरिया) में जिंक, कॉपर आदि को कितना परिमाण तक बर्दाश्त करने की क्षमता है। इस शोध में पता चला कि जलाशयों में रहने वाले जीवाणुओं में कॉपर आदि को हजम करने की क्षमता काफी बढ़ गई है। इसका मतलब है कि जिन जलाशयों से जीवाणुओं का सैम्पल लिया गया, उन जलाशयों में ये तत्त्व मौजूद हैं और ये जीवाणु उन तत्त्वों को ग्रहण कर रहे हैं और अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा रहे हैं।

‘असेसमेंट ऑफ हेवी मेटल टॉक्सीसिटी इन फोर स्पेसीस ऑफ फ्रेशवाटर सिलीएट्स (स्पाइरोट्रिकिया: कल्यिफोरा) फ्रॉम दिल्ली’ नाम के शोध में जलाशयों में पाये जाने वाले कण जीवों (प्रोटोजोआ) पर लैब में प्रयोग कर पाया गया कि उनके शरीर में लेड, कैडमियम, निकेल, कॉपर व जिंक मौजूद हैं।शोध के लिये यूप्लॉट, नोटोइमेना, सूडोरोस्टिला, टेटमिमेना नामक बैक्टीरिया (जीव कण) नमूने के तौर पर लिये गए थे और इन नमूनों को प्रयोगशाला में लेड, कैडमियम, निकेल, कॉपर व जिंक देकर यह पता लगाने की कोशिश की गई कि वे ये तत्त्व कितनी मात्रा में ग्रहण कर जीवित रहते हैं। शोध में सामने आये तथ्यों से पता चलता है कि जलाशयों में ये खतरनाक तत्त्व मौजूद हैं और कण जीवों के शरीर में ये तत्त्व जा रहे हैं।

शोध कार्य दिल्ली के आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज, मैत्रेयी कॉलेज और लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के लाइफ साइंसेज विभाग की ओर से किया गया था।

शोध के लिये ओखला बर्ड सेंचुरी, दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी के संजय लेक और राजघाट स्थित तालाब से बैक्टीरिया को संग्रह किया गया था।

ओखला बर्ड सेंचुरी यमुना के ओखला बैराज में है। यह सेंचुरी उस जगह पर स्थित है जहाँ यमुना नदी उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। असल में यहाँ बर्ड सेंचुरी के लिये बड़े लेक का निर्माण किया गया था। करीब 4 किलोमीटर में फैली यह सेंचुरी कूड़ा और बालू से भरा हुआ है।

संजय लेक पूर्व दिल्ली के त्रिलोकपुरी में स्थित है। इसका क्षेत्रफल करीब 1 किलोमीटर है और मूलतः बारिश के पानी से यह रिचार्ज होता है। दिल्ली का सीवेज भी इसमें गिरता है।

यहाँ यह भी बता दें कि ये बैक्टीरिया कण पानी को साफ रखने में मदद करते हैं। यही नहीं, ये सीवेज को भी प्राकृतिक तरीके से ट्रीट करने की क्षमता रखते हैं। पश्चिम बंगाल में स्थित ईस्ट कोलकाता वेटलैंड में कोलकाता शहर से निकलने वाले हजारों गैलन गन्दे पानी का प्राकृतिक तौर पर ट्रीटमेंट ये बैक्टीरिया ही करते हैं। ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स 125 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस वेटलैंड्स में कोलकाता शहर से रोज निकलने वाले 750 मिलियन लीटर गन्दे पानी का परिशोधन प्राकृतिक तरीके से हो जाता है। परिशोधन होने के बाद इस पानी का इस्तेमाल खेतों में भी किया जाता है और मछली के भोजन के काम भी आता है।

चुनांचे शोध में सामने आये तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि दिल्ली के इन जलाशयों (शोध में जिन जलाशयों से पानी का संग्रह किया गया) में रहने वाले बैक्टीरिया जहरीले तत्वों की चपेट में आ चुके हैं। ये तो बात हुई इस शोध की, लेकिन इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि जिन जलाशयों के बैक्टीरिया पर शोध हुआ, उन जलाशयों में ही गन्दगी है और दूसरे जलाशयों (जिनमें मौजूद बैक्टीरिया पर शोध नहीं हुआ है) में ये जहरीले तत्व नहीं है और वहाँ के बैक्टीरिया सुरक्षित हैं।

उधर, दिल्ली सरकार की वेबसाइट में जो सूचनाएँ उपलब्ध हैं, उनके अनुसार पूरी दिल्ली में एक सौ से भी अधिक तालाब गन्दे हैं। उक्त वेबसाइट में तालाबों की स्थिति, उनका क्षेत्रफल व तालाबों का आधिकारिक दौरा किये जाने का भी जिक्र है। वेबसाइट में उपलब्ध तथ्यों के अनुसार तालाबों का सर्वेक्षण वर्ष 2010 से पहले किया गया था और सर्वेक्षण के आधार पर गन्दे तालाबों की सूची तैयार की गई थी। दिल्ली सरकार की इस वेबसाइट को आखिरी बार वर्ष 2016 में अपडेट किया गया है।
तालाब भूजल को रिचार्ज तो करता है लेकिन पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने में भी इसकी बड़ी भूमिका है। शोधों के अनुसार तालाब में प्रदूषण फैलाने वाले कई जहरीले तत्वों को सोख लेने की अकूत क्षमता है।
इंटरेशनल रिसर्च जर्नल ‘करेंट वर्ल्ड एनवायरमेंट’ में छपे एक शोध के अनुसार तालाब व जलाशय जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये जीवमण्डल की वैश्विक प्रक्रिया और जैवविविधता को बनाए रखने में भी कारगर होते हैं। शोध में कहा गया है कि 500 वर्गमीटर का तालाब एक साल में 1000 किलोग्राम कार्बन सोख सकता है। यही नहीं, जलाशय सतही पानी से नाइट्रोजन जैसी गन्दगी निकालने में भी मददगार हैं और तापमान तथा आर्द्रता को भी नियंत्रित रखते हैं।
टॉक्सिक लिंक नाम के एनजीओ के डायरेक्टर रवि अग्रवाल के अनुसार, जलाशय प्राकृतिक जलचक्र का हिस्सा हैं और पूरा पारिस्थितिक तंत्र इस पर निर्भर है। अगर जलाशय बर्बाद हो जाये, तो जल चक्र टूट जाएगा।
जलाशयों के फायदों के मद्देनजर यह जरूरी है कि उन्हें सुरक्षित और संरक्षित किया जाये, ताकि पेयजल की समस्या का भी निबटारा हो सके, पर्यावरण की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके और जलचक्र भी बना रहे।
@shikha

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